वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटीज पर राउंड टेबल सम्मेलन में उच्चतर शिक्षा में सुधारों का आह्वान
सोनीपत, भारत, October 5, 2017 /PRNewswire/ --
O. P. Jindal Global University ने 30 सितम्बर 2017 को वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटीज पर राउंड टेबल चर्चा के आयोजन के साथ अपनी आठवीं वर्षगांठ मनाई।
इसमें शामिल प्रतिष्ठित प्रतिभागियों में Mr. Kewal Kumar Sharma, IAS, सचिव, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD), भारत सरकार; H.E. Ms. Mariela Cruz Alvarez, कोस्टा रिका की राजदूत; Ms. Sun Meixing, शैक्षिक मामलों के प्रमुख, भारत में चीन का दूतावास; Dr. Bertrand de Hartingh, सहयोग और सांस्कृतिक मामलों के काउंसलर, भारत में फ्रांस का दूतावास; Mr. Stephan Lanzinger, काउंसलर, और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुभाग के प्रमुख, भारत में जर्मनी का दूतावास, और Mr. Frederick Hawkins, वाइस कांसुल, भारत में अमेरिका का दूतावास, नई दिल्ली आदि प्रमुख थे।
शिक्षाविदों, प्रैक्टिशनरों और अंतरराष्ट्रीय राजनयिकों द्वारा वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटीज की विशेषताएं समझने, तथा इसे किस तरह से ग्लोबल (विश्वस्तरीय) विश्वद्यालयों की रैंकिंग ने भारतीय विश्वद्यालयों के लिए नए अवसर और चुनौतियां उत्पन्न की हैं, इस संवाद की पहल हेतु इस राउंड टेबल का आयोजन किया।
इस राउंडटेबल का आयोजन, University Grants Commission (UGC) द्वारा प्रतिष्ठित संस्थान खोलने के आवेदन संबंधी हाल की घोषणा के परिप्रेक्ष्य में किया गया। इस प्रयास के तहत ऐसे 20 संस्थान स्थापित करने का लक्ष्य है, जिनमें से 10 सार्वजनिक और 10 निजी क्षेत्र में होंगे, जिन्हें विश्व की अग्रणी रैंकिंग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
Mr. Kewal Kumar Sharma , आईएएस, सचिव, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD), भारत सरकार, ने आठ वर्षों के छोटे से समय में JGU को इसकी उपलब्धियों पर बधाई देते हुए अपना सम्बोधन शुरू किया। उन्होंने वैश्विक उच्चतर शिक्षा के उभरते परिदृश्य और भारतीय उच्चतर शिक्षा संस्थानों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर विचार प्रकट किए। विश्वविद्यालयों की रैंकिंग को लेकर जारी बहस के संदर्भ में Mr. Sharma ने कहा कि हालांकि अनेक भारतीय संस्थान, विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र में, रैंकिंग मापदंड पूरे करने में संरचनागत चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, रैंकिंग ने उत्कृष्टता के लिए प्रेरणाएं जगा दी हैं। उन्होंने कहा कि MHRD का प्रतिष्ठित संस्थानों का प्रस्ताव शीर्षस्तरीय भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के बीच अधिक गहन साझेदारियों को प्रोत्साहित करेगा। Mr. Sharma ने आगे कहा कि MHRD द्वारा शुरू किए गए उच्चतर शिक्षा के अन्य जारी सुधारों का लक्ष्य बेहतर प्रदर्शन करने वाले उच्चतर शिक्षा संस्थानों पर नियामकीय नियंत्रणों को कम करना है।
'प्रतिष्ठित संस्थान' स्थापित करने के लिए सरकार की पहल पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा कि, "विशेषज्ञों की एक अधिकारप्राप्त समिति में शामिल प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा इन प्रस्तावों के गुणों का विश्लेषण किया जाएगा। हमने दस निजी क्षेत्र और दस सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों से उनके प्रस्तावों को प्रस्तुत करने का अनुरोध किया है।"
संस्थापक वाइस चांसलर, Professor (Dr.) C. Raj Kumar, ने कहा कि, "चूंकि हम भारत में उच्चतर शिक्षा संस्थानों की संख्या और गुणवत्ता बढ़ाना चाहते हैं, इसलिए हमें दुनिया के अनुभवों से सीखना होगा। इसकी वजह है क्यों कोई एक भी विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय लाभकारी रूप से नहीं चलाया जा रहा है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालय जो दुनिया में शीर्ष रैंक प्राप्त हैं और शिक्षण, शोध और क्षमता सृजन में उन्होंने काफी प्रतिष्ठा कमाई है, वे सभी अलाभकारी संस्थान रहे हैं।"
उन्होंने कहा "आज भारतीय उच्चतर शिक्षा क्षेत्र की वृद्धि, विस्तार और विकास ने हमारे देश को अकल्पनीय तरीकों से बदल दिया है। हालांकि ऐसे स्तर की वैश्विक उत्कृष्टता वाले संस्थान विकसित करने का उद्देश्य पूरा करने की सजग आवश्यकता है जहां वे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से स्पर्धा कर सकें।"
शिक्षा पर अधिक निवेश और फोकस किए जाने की ज़रूरत पर अपने विचार प्रकट करते हुए H.E. Ms. Mariela Cruz Alvarez ने कहा कि कोस्टा रिका ऐसा देश है जहां कोई सेना नहीं हैः "प्रतिरक्षा व्यवस्था न होना ही हमारी सबसे बड़ी प्रतिरक्षा है। जीवन के उच्चतर सिद्धांतों के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए हमने 1948 में यह निर्णय लिया था। हम अपने नागरिकों की सर्वोत्तम संभावनाएं विकसित करने के मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं।"
Dr. Bertrand de Hartingh, सहयोग और सांस्कृतिक मामलों के काउंसलर, भारत में फ्रांस का दूतावास का मत था कि रैंकिंग के लिए स्पर्धा ही एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि 'सभी के लिए उच्चतर शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने 'वर्ल्ड-क्लास यूनिवर्सिटी' को 'ओपेन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी' के रूप में पारिभाषित किया, जहां पूरी दुनिया से आए छात्रों का स्वागत किया जाता हो।
Dr. Hartingh ने केवल द्विपक्षीय समझौतों के बजाय विश्वविद्यालयों के बहुपक्षीय साझेदारियों वाले मॉडल पर ज़ोर दिया, जिससे अनेक विश्वविद्यालय एक वैश्विक प्लेटफॉर्म पर एक साथ आ सकें।
Mr. Stephan Lanzinger, काउंसलर और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुभाग के प्रमुख, भारत में जर्मनी के दूतावास ने संस्थानों के अंतर्राष्ट्रीयकरण, उदारता, और स्वायत्ता पर विचार प्रकट किए। उन्होंने कहा कि "एक उद्देश्य और एक दृष्टिकोण प्रदान करना ही उच्चतर शिक्षा की भूमिका है।"
इसे रेखांकित करते हुए कि किस तरह से चीनी सरकार ने लगातार प्रयास करके विविध परियोजनाओं के माध्यम से सभी स्तरों पर शिक्षा की गुणवत्ता में लगातार सुधार किया है, Ms. Sun Meixing, शैक्षिक मामलों के प्रमुख भारत में चीन के दूतावास ने कहा कि "1990 के दशक में सरकार ने देश के उच्चतर शिक्षा संस्थानों को उन्नत बनाने के ध्येय के साथ कई परियोजनाएं चलाईं, जिसके अंतर्गत 100 से अधिक विश्वविद्यालयों को विकास करने तथा उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए चुना गया। सरकार ने इन संस्थानों को शोध और उत्कृष्टता के प्रमुख केंद्र बनाने के लिए विशेषरूप से धन और संसाधन उपलब्ध कराए।"
Ms. Meixing ने आगे कहा कि संयुक्त और दोहरी डिग्री वाले प्रोग्राम, चीनी छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय विकल्प हैं। चीनी सरकार ने चीन में विदेशी शिक्षकों को आकर्षित करने के लिए भी काफी संसाधन निवेश किए हैं ताकि छात्रों को विदेशी विश्वविद्यालयों में महंगी पढ़ाई का बोझ उठाए बिना विश्वस्तरीय शिक्षा प्राप्त हो सके। चीन में उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव भी देखने को मिला है और अब शीर्षस्तरीय रैंकिंग वाले विदेशी संस्थानों की ओर से चीन में स्थापित कैम्पसों में उच्चतर शिक्षा प्रदान की जा रही है। इन विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित प्रोग्राम पूरी तरह से अंग्रेजी भाषा में हैं और ये चीनी छात्रों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्पर्धा करने में सक्षम बनाते हैं।
Ms. Meixing ने छात्रों के लिए छात्रवृत्तियों के महत्त्व पर ज़ोर दिया और भारत व चीन के बीच छात्र विनिमय अवसर बढ़ाए जाने की ज़रूरत पर बल दिया।
डीन Ms. Kathleen A. Modrowski, प्रोफेसर और डीन, Jindal School of Liberal Arts and Humanities, JGU ने कहा कि, "विश्वविद्यालयों को ऐसा स्थान बनाना होगा जहां छात्र, शिक्षक, शोधकर्ता सभी मिलकर भविष्य के लिए एक आदर्श समाज की रचना के लिए प्रयास कर सकें।"
'विश्वविद्यालयों में शोध के आयाम', पर Mr. Gudmundur Eiriksson, प्रोफेसर और एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, सेंटर फॉर लीगल स्टडीज़, Jindal Global Law School ने ज़ोर देते हुए कहा कि, "शोध का प्रभाव केवल छात्रों पर ही नहीं, बल्कि व्यापक समाज पर ही दिखना चाहिए।" उन्होंने केवल प्रकाशित शोधपत्रों को ही नहीं बल्कि लिखित पुस्तकों को भी शोध सामग्री का भाग माने जाने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
Dr. Thomas Lairson, प्रोफेसर, जिंदल स्कूल ऑफ लॉ ऑफ ह्यूमिनिटीज ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि, "वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटीज छात्रों और शिक्षकों के दैनिक पारस्परिक व्यवहार से विकसित और प्रतिष्ठित होती हैं।" उन्होंने उच्चतर शिक्षा में अधिक पारदर्शिता पर ज़ोर देते हुए कहा कि, "केंद्र और राज्य सरकारों के बीच नौकरशाही सरकारी अनदेखी ने उच्च अकादमिक मानकों की उपलब्धियों को कम करके आंका है।"
इस चर्चा के दायरे में नियामकीय संस्थाओं जैसे कि UGC को शामिल करते हुए संस्थानों के प्रदर्शन पर इसके असर की व्यापकता पर विचार किया गया।
अनेक वक्ताओं ने यह भी उल्लेख किया कि भारत ने देश में उच्चतर शिक्षा प्रणाली के प्रसार से उत्पन्न विशेष चुनौतियों का सामना किया है, सार्वजनिक और निजी संस्थानों से जुड़े अद्वितीय मसले हैं और सभी के लिए शिक्षा तक समान पहुंच के रास्ते में अभी तमाम चुनौतियां हैं। भारत में वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटीज के व्यापक लक्ष्य को साकार करने के लिए आवश्यक प्रयासों पर चर्चा के साथ इस राउंड टेबल का समापन हुआ।
मीडिया संपर्क:
Ms. Kakul Rizvi
O. P. Jindal Global University
Additional Director
Communication & Public Affairs
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