सोनीपत, भारत और हैम्बर्ग, जर्मनी, June 12, 2017 /PRNewswire/ --
- उच्चतर शिक्षा के भविष्य पर चर्चा करने के लिए, 30 देशों से विश्व के अग्रणी विश्वविद्यालयों के 50 से अधिक प्रेसिडेंट और वाइस चांसलरों का जर्मनी में सम्मेलन
O.P. Jindal Global University के संस्थापक वाइस चांसलर, प्रोफेसर, Dr. C. Raj Kuma ने 7 से 9 जून, 2017 के दौरा आयोजित प्रतिष्ठित 2017 Hamburg Transnational University Leaders Council, जर्मनी में अपना भाषण दिया। O.P. Jindal Global University इस काउंसिल में आमंत्रित दो भारतीय उच्चतर शिक्षा संस्थानों में से एक थी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान एक अन्य संस्थान था जिसे आमंत्रित किया गया था।
(Photo: http://mma.prnewswire.com/media/521701/Jindal_University.jpg )
दुनिया भर में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा प्रणालियां जिन वर्तमान प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रही हैं, उनके बारे में वैश्विक विश्वविद्यालयों के लीडर्स के बीच एक संवाद करने के लिए इस फोरम का आयोजन किया गया था।
काउंसिल में अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के प्रेसिडेंट, वाइस चांसलर और रेक्टर्स एकत्रित हुए और जर्मन रेक्टर्स कॉन्फ्रेन्स, Körber Foundation, और Universität Hamburg द्वारा इसे संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। पहली काउंसिल जून 2015 में आयोजित हुई और इसमें लगभग साठ अग्रणी शोध विश्वविद्यालयों के लीडर्स एकत्रित हुए।
प्रोफेसर, Dr. C. Raj Kumar ने काउंसिल के दौरान दो पैनलों में अपना भाषण दिया। उन्होंने आरंभिक पैनल 'छह देश - छह यूनिवर्सिटी लीडर' पर उद्घाटन पैनल को सम्बोधित किया, जिसमें टर्शियरी शिक्षा के जनसामान्य के बीच प्रचलन के प्रभावों, वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था के उद्भव और बढ़ती राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के प्रभावों पर चर्चा की गई तथा इस पर भी कि किस तरह से ये मसले दुनिया भर में माध्यमिक से उच्चतर शिक्षा प्रणालियों में विभेदीकरण और विविधीकरण को और प्रोत्साहित करेंगे।
प्रोफेसर, Dr. C. Raj Kumar ने कहा कि, "भारतीय विश्वविद्यालयों का भविष्य इस पर निर्भर होगा कि कितने प्रभावशाली ढंग से हम बड़ी संख्या में युवाओं के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुंच प्रदान कर पाते हैं और इसके साथ ही विश्वस्तरीय उत्कृष्टता वाले संस्थान खड़े करने के लिए किस तरह आकांक्षाएं प्रेरित कर पाते हैं। उच्चतर शिक्षा में आभिजात्य सोच को दरकिनार करना होगा और नियामकीय ढांचे को विभेदीकरण और मूल्यांकन के ऐसे मॉडलों का समर्थन करना होगा जो उत्कृष्ट संस्थानों को मान्यता देते हों।"
विकसित और विकासशील देशों के 50 से अधिक विश्वविद्यालय प्रमुखों को सम्बोधित करते हुए, प्रोफेसर, Dr. C. Raj Kumar ने कहा कि, "विश्वविद्यालयों की अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग ने उत्कृष्टता प्राप्त करने की दिशा में भारतीय विश्वविद्यालयों के सामने नए अवसर उत्पन्न किए हैं। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय विकसित करने के लिए भारतीय उच्चतर शिक्षा प्रणाली में ढांचागत बदलाव को सप्रयास बढ़ावा दिया जा रहा है। यदि हम अपने उच्चतर शिक्षा संस्थानों में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना चाहते हैं तो भारत में सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के बीच अंतरों को लेकर पक्षपात और पूर्वाग्रह भरी ऐतिहासिक सोच को तिलांजलि देनी होगी। सभी विश्वविद्यालयों से समान व्यवहार किया जाना चाहिए और उनका एक सार्वजनिक स्वरूप होना चाहिए जिन्हें सामान्य बेहतरी (वृहद जनकल्याण) की दिशा में योगदान करना चाहिए। किसी भी भांति स्थापित समस्त विश्वविद्यालयों के योगदान का मूल्यांकन शिक्षण, शोध, ज्ञान सृजन, प्रकाशन, सामाजिक सहभागिता और सामुदायिक प्रभाव के पैमानों पर ही किया जाना चाहिए। भारत में उच्चतर शिक्षा संस्थानों का मूल्यांकन करना होगा और उन्हें दूरदर्शी नजरिए तथा उनके अपने संस्थागत मिशन के संदर्भ में उनकी प्रतिबद्धता के लिए जवाबदेह बनाना होगा।"
प्रोफेसर, Dr. C. Raj Kumar को 'राष्ट्रीय उत्तर-माध्यमिक प्रणालियों में निजीकरण' विषय पर आयोजित पैनल चर्चा में भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया, जहां उन्होंने JGU से जुड़े संस्थान विकास प्रयासों तथा भारतीय उच्चतर शिक्षा से संबंधित चुनौतियों के संदर्भ में अपने विचारों को प्रस्तुत किया।
श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए प्रोफेसर, Dr. C. Raj Kumar ने कहा कि, "उच्चतर शिक्षा प्रणाली का निजीकरण दुनिया के अनेक विकासशील देशों में जिनमें दक्षिण एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के देश शामिल हैं, एक अपरिहार्य लोक नीति विकल्प है। हालांकि यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि विश्वविद्यालयों समेत उच्चतर शिक्षा संस्थानों को लाभ कमाने के निजी संस्थान नहीं बनना चाहिए। गुणवत्तापरक तथा किफायती, सुलभ उच्चतर शिक्षा की उपलब्धता, जो समता और दक्षता को बढ़ावा देती हो, लोकहित के लिए अनिवार्य है, जिसे सार्वजनिक और निजी अलाभकारी क्षेत्रों द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। किसी संस्थान के "अलाभकारी (not-for-profit)" कानूनी दर्जे को संस्थान द्वारा उसका फीस ढांचा निर्धारित करने की क्षमता और कर्मचारियों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। अलाभकारी दर्जे का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि संस्थान द्वारा अर्जित अतिरिक्त आय रखी जाए और इसका इसके विकास के लिए उपयोग किया जाए। इसे आमतौर से शोध कार्यक्रमों, छात्रवृत्तियों और अध्येतावृत्तियों, तथा ढांचागत विकास के लिए उपयोग किया जा सकता है।"
प्रोफेसर, Dr. C. Raj Kumar ने आगे कहा कि, "उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने की सोच के साथ JGU को एक भारतीय संरक्षक Mr Naveen Jindal के एक मानवतावादी प्रयास के माध्यम से एक अलाभकारी विश्वविद्यालय (not-for-profit university) के रूप में स्थापित किया गया था। यह उल्लेख करना महत्त्वपूर्ण है कि विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय अलाभकारी संस्थान हैं। चूंकि हम भारत में उच्चतर शिक्षा संस्थानों की संख्या बढ़ाने और गुणवत्ता ऊंची करने के लिए प्रयासरत हैं, इसलिए हमें दुनिया भर के अनुभवों से सीखना होगा। यही कारण है कि दुनिया में एक भी विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय लाभकारी ढांचे वाला नहीं है। दुनिया में शीर्षस्तरीय रैंक हासिल करने वाले सरकारी और निजी विश्वविद्यालय जो शिक्षण, शोध और क्षमता-सृजन में उत्कृष्टता के लिए प्रतिष्ठित हैं, वे सभी अलाभकारी संस्थान ही हैं।"
Hamburg Transnational University Leaders Council में जिन प्रमुख चुनौतियों पर चिंतन-मनन किया गया उनमें विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और अकादमिक स्वतंत्रता के सामने मौजूद खतरे, विश्वविद्यालयों और शिक्षा की विरोधाभासी विचारधाराएं, उच्चतर शिक्षा तक पहुंच की चुनौती, तथा विश्वविद्यालयी शिक्षण और शोध के वित्तपोषण के प्रश्न आदि शामिल थीं। वैश्वीकृत उच्चतर शिक्षा परिदृश्य में विश्वविद्यालय के आधारभूत मिशन पर चर्चा करने के लिए काउंसिल ने एक फोरम की तरह भूमिका निभाई।
फोरम में सार्वजनिक हित में निजी उच्चतर शिक्षा की चुनौतियों पर विचार किया गया और राष्ट्रीय उत्तर-माध्यमिक प्रणालियों के पर्याप्त वित्तपोषण और नियंत्रण व्यवस्थाओं पर विचार-विमर्श हुआ।
यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि दिसम्बर 2015 में JGU की ओर से International Institute for Higher Education Research and Capacity Building (IIHEd) ने 'BRICS और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों पर सोनीपत घोषणा' का प्रारूप तैयार किया था और 'उभरती अर्थव्यवस्थाओं को विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों की आवश्यकता क्यों है' विषय पर आयोजित BRICS और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के विश्वविद्यालयों के सम्मेलन में दुनिया भर के उच्चतर शिक्षा संस्थानों के बीच इस घोषणा पर सहमति बनाने की पहल की थी।
इस घोषणा के तहत छह मुख्य सिद्धांतों पर सहमति बनी जो विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों के सृजन और विकास का मार्गदर्शन करेंगेः ज्ञान की खोज और नवप्रवर्तन को प्रोत्साहन; विद्यार्थियों, फैकल्टी और स्टाफ की उच्चतम गुणवत्ताएं; सर्वोच्च अनुसंधान मानक; महानता प्राप्त करने के लिए विश्वविद्यालयों हेतु उपयुक्त संसाधन; स्वतंत्र पूछताछ और कैरियर विकास के लिए परिवेश; और स्थानीय व वैश्विक संपर्कों के माध्यम से शिक्षण और शोध गुणवत्ता का संवर्धन।
वर्तमान में विश्वविद्यालयों द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने के संदर्भ में, सोनीपत घोषणा और हैम्बर्ग प्रोटोकॉल के बीच अनेक समानताएं हैं।
O.P. Jindal Global University (JGU) के विषय में:
JGU एक शोध केंद्रित विश्वविद्यालय है जिसके छह स्कूलों में अनेक शोध केंद्रों के रूप में शोध संकुल हैं और वर्तमान में 42 देशों में 150 से भी अधिक प्रमुख विश्वविद्यालयों के साथ गठबंधन हैं।
छह वर्षों के मामूली समय में ही JGU ने हरियाणा राज्य में ऐसे प्रथम निजी विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल कर लिया है जिसे National Assessment and Accreditation Council (NAAC) द्वारा सर्वोच्च रेटिंग ग्रेड "A" प्रदान किया गया है।
अधिक जानकारी के लिए, देखें: http://www.jgu.edu.in/.
मीडिया संपर्क:
Ms. Kakul Rizvi
Additional Director
Communication and Public Affairs
O.P. Jindal Global University
[email protected]
+91-8396907273
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