फेफड़ों की सेहत पर यूनियन वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस में केन्द्रीय टी.बी. प्रभाग और यूएसएड की सहभागिता में KHPT ने की एक पैनल की मेज़बानी
- भारत में टी.बी. के सुप्त संक्रमण के मामलों के समाधान के लिए पैनल सदस्यों ने नीति और समुदाय की भूमिका पर चर्चा की
नई दिल्ली, 26 अक्टूबर 2020 /PRNewswire/ -- कर्नाटक हैल्थ प्रोमोशन ट्रस्ट (KHPT) ने केन्द्रीय टी.बी. प्रभाग (CTD) और युनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनैशनल डैवलपमेंट (USAID) के सहयोग से 23 अक्टूबर को 51वीं यूनियन वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस ऑन लंग हैल्थ में 'भारत में टी.बी. के सुप्त संक्रमण' के विषय पर एक पैनल चर्चा आयोजित की। यह कॉन्फ्रेंस क्लीनिशियंस व जन स्वास्थ्य कर्मियों, स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रबंधकों, नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं एवं पक्षकारों का दुनिया में सबसे बड़ा सम्मेलन है जो फेफड़ों की बीमारियों से उपजे कष्टों को समाप्त करने के लिए काम करते हैं। इस कॉन्फ्रेंस में निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों के नागरिकों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस साल की कॉन्फ्रेंस महामारी के चलते ऑनलाइन हुई और इस बार फेफड़ों की बीमारियों की रोकथाम में तीव्रता लाने के महत्व पर प्रकाश डाला गया।
पैनलिस्ट थे:- डॉ कुलदीप सिंह सचदेवा, उस महानिदेशक - टी.बी., सीटीडी; डॉ रूबेन स्वामीकन, प्रमुख-संक्रामक रोग प्रभाग, यूएस एड/भारत; डॉ करुणा सागिली, वरिष्ठ तकनीकी सलाहकार, टी.बी. एवं संचारी रोग, द यूनियन साउथ ईस्ट एशिया (द यूनियन), भारत; श्री दलबीर सिंह, प्रेसिडेंट, ग्लोबल कोलिशन अगेन्स्ट टी.बी. (GCAT); श्री मोहन एच एल, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, KHPT और टी.बी. को परास्त करने वाली 32 वर्षीय कर्नाटक निवासी सुश्री सुनीता डी। इन पैनल सदस्यों ने भारत में टी.बी. के सुप्त संक्रमण के बारे में अनेक मुद्दों पर चर्चा की जिनमें इसके हल हेतु नीति एवं सुमादय की भूमिकाओं, समुदाय-केन्द्रित दृष्टिकोण के महत्व, सामुदायिक तंत्र का लाभ लेने और इस समस्या के समाधान हेतु नीतिगत कदमों पर भी बात की गई।
टी.बी. का सुप्त संक्रमण उसे कहते हैं जब कोई टी.बी. उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया से तो संक्रमित हो चुका हो किंतु उसमें बीमारी न पनपी हो। सुप्त संक्रमण वाले ऐसे लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखते और वे बीमारी को भी नहीं फैला सकते, लेकिन अगर उनका इम्यून सिस्टम यानी उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो तो उनमें टी.बी. की बीमारी पनप सकती है। ऐसे लोगों को अगर कोई अन्य बीमारी भी है जैसे एचआईवी और डाइबिटीज़, तथा यदि वे गरीब, वृद्ध, कम उम्र या कुपोषित भी हुए तो उन्हें टी.बी. पनपने का जोखिम बढ़ जाता है। काबिले गौर है कि भारत पर टी.बी. का जोखिम सबसे अधिक है, हमारे देश में साल 2019 में टी.बी. के 24 लाख रोगियों की सूचना दर्ज हुई है, बहुत चिंता की बात यह है कि भारत की लगभग 40 प्रतिशत आबादी इस 'खामोश संक्रमण' को लिए हुए है। इसलिए यह अहम है कि लोगों की निवारक देखभाल की जाए, खासकर उन लोगों की जिन्हें इसका ज्यादा जोखिम है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके की कोई भी छूटे नहीं। भारत का लक्ष्य है 2025 तक देश से टी.बी. को उखाड़ फेंकना ऐसे में निवारक देखभाल को अमल में लाना ही होगा।
डॉ के एस सचदेवा ने कहा, "यह बात समझी जा चुकी है कि केवल टी.बी. के इलाज पर ध्यान देने से भविष्य में टी.बी. के मामलों में कमी नहीं लाई जा सकती। टी.बी. उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए टी.बी. के सुप्त संक्रमण से ग्रस्त लोगों को निवारक देखभाल मुहैया कराना भी उतना ही जरूरी है।" उन्होंने टी.बी. के सुप्त संक्रमण की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए यूएस ऐड, KHPT व अन्य सहयोगियों के योगदान को सराहा; उन्होंने 'ब्रेकिंग द बैरियर्स' प्रोजेक्ट जैसे कदमों का भी उल्लेख किया। "अपने उद्देश्य में कामयाब होने के लिए हमें सहयोगात्मक एवं केन्द्रित प्रयास की आवश्यकता है जिसमें न सिर्फ सरकार बल्कि प्राइवेट सेक्टर, सामुदायिक संगठन, सिविल सोसाइटी और सबसे अहम समाज का सहयोग भी अत्यावश्यक है'', डॉ सचेदवा ने कहा।
वैश्विक सहभागिताओं की अमह भूमिका पर डॉ रूबेन स्वामिकन ने कहा, "कमज़ोर तबकों के लिए सक्रिय सामुदायिक सहभागिता और रोगी-केन्द्रित दृष्टिकोण न होने के परिणामस्वरूप कितने ही टी.बी. रोगियों का पता नहीं चल पाता और ठीक से इलाज न हो पाने का अनुपात बहुत बढ़ जाता है। राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-25) के मुताबिक चलते हुए यूएस ऐड सीटीडी के साथ करीबी से काम करते हे मजबूती एवम स्वावलंबन निर्माण कर रही है।'' डॉ स्वामिकन ने अनुशंसा की कि टी.बी. निवारक थेरपी, समग्र टी.बी. देखभाल व प्रबंधन रणनीति का अत्यावश्यक हिस्सा है तथा राष्ट्रीय कार्यक्रम व उसके सहयोगियों को मिलकर निवारक सेवाओं को पूरे देश में उपलब्ध कराना होगा।
डॉ करुणा सागिली ने टी.बी. के सुप्त संक्रमण के समाधान हेतु सामुदायिक तंत्र के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "नीति से लेकर अमल, निगरानी व समीक्षा तक सुप्त संक्रमण के प्रबंधन के दौरान टी.बी. से स्वस्थ्य हुए लोगों को शामिल "कर हम यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि टी.बी. देखभाल के कार्य में जो खामियां रह जाती हैं उन्हें दूर किया जा सके। अन्य स्वास्थ्य विभागों - जैसे जच्चा बच्चा स्वास्थ्य - की गतिविधियों के साथ तालमेल कर के सीमित संसाधनों के बढ़िया उपयोग में मदद मिल सकेगी।''
श्री दलबीर सिंह ने GCAT की नीति पहलों के बारे में बताया जिनसे राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम को आकार देने में मदद मिली टी.बी. के सुप्त संक्रमण हेतु परीक्षण में कमियों को प्रकाश में लाया जा सका और टी.बी. पर प्रतिक्रिया हेतु अगुआई के लिए समुदायों को सशक्त करने की जरूरत को स्पष्ट किया गया। KHPT के सीईओ श्री मोहन एच एल ने बताया कि समुदाय को साथ जोड़कर टी.बी. रोगी-केन्द्रित हस्तक्षेप लागू करने का उनका क्या अनुभव रहा। उन्होंने 'ब्रेकिंग द बैरियर्स प्रोजेक्ट' के बारे में बताया जो वंचित तवकों के भीतर मौजूद व्यवहार संबंधी संरचनात्मक एवं आधारभूत अवरोधों को हल करने के लिए कार्यरत है। इस प्रोजेक्ट में ऐसी रणनीतियां बनाने का काम हो रहा है जिनसे इस जोखिम में पड़ी आबादी के इलाज के नतीजों को बेहतर किया जा सके।
सुश्री सुनीता ने टी.बी. से अपनी लड़ाई की कहानी को साझा किया, टी.बी. की पहचान होने से लेकर ठीक होने तक और उन्होंने टी.बी. से जूझ रहे लोगों के लिए संदेश भी दिया। "अगर आपको टी.बी. है तो डरने की ज़रूरत नहीं, यह कोई स्थायी रोग नहीं है, इसका इलाज मुमकिन है। आपको उपचार नियमों का सही ढंग से पालन और इलाज पूरा करना चाहिए। अगर आप मजबूती से इलाज पर टिके रहेंगे तो टी.बी. को परास्त कर देंगे," सुनीता ने कहा।
कर्नाटक हैल्थ प्रोमोशन ट्रस्ट (KHPT) के बारे में
KHPT एक निर्लाभकारी संगठन है जो भारतीयों के स्वास्थ्य व कल्याण में सुधार हेतु साक्ष्य आधारित कार्यक्रमों को आगे बढ़ाता है। KHPT मुख्यत: मातृ, नवजात व बाल स्वास्थ्य, टी.बी. किशोर स्वास्थ्य और व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्रों में काम करता है। KHPT ब्रेकिंग द बैरियर्स पर अमल कर रहा है जो एक चार वर्षीय (2020-2024) प्रोजेक्ट है, जिसे यूएस ऐड द्वारा समर्थन दिया जा रहा है और टी.बी. अलर्ट इंडिया, वर्ल्ड विज़न इंडिया व केयर इंडिया इस प्रोजेक्ट में साझेदार हैं जो क्रमशः कर्नाटक, तेलंगाना, असम व बिहार में इसे लागू कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है व्यवहार में बदलाव लाने के लिए अभिनव और प्रभावी ऑपरेशनल मॉडल विकसित किए जाएं ताकि जोखिम में पड़े कुछ खास वर्गों की कवरेज में सुधार हो सके; ऐसे वर्गों में शामिल हैं - शहरी कमज़ोर तबके, आदिवासी समुदाय, प्रवासी, खनन/औद्योगिक/चाय बागान कामगार। इस तरह टी.बी. के मामलों की ज्यादा सूचनाएं दर्ज होंगी तथा जो मरीज ड्रग सेंसिटिव टी.बी. और ड्रग रेसिस्टेंट टी.बी. से जूझ रहे हैं उनके इलाज के बेहतर परिणाम मिल सकेंगे।
KHPT या ब्रेकिंग द बैरियर्स पर और अधिक जानकारी के लिए कृपया विज़िट करें www.khpt.org या सम्पर्क करें श्रमना मजुमदार, सम्प्रेषण विशेषज्ञ, ब्रेकिंग द बैरियर्स [email protected] या + 91 98313 88083
Media Contact : श्रमना मजुमदार, [email protected], + 91 98313 88083, सम्प्रेषण विशेषज्ञ, ब्रेकिंग द बैरियर्स, Karnataka Health PromotionTrust
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