मुंबई, भारत, 18 जनवरी, 2021 /PRNewswire/ -- साल २०२० हर देश तथा हर व्यक्ती के लिये अजीब परेशानीवाला साल रहा| यह डर, मानसिक तनाव और अनिश्चितता से भरा रहा| किसी अपने को खोने का खयाल भी खौफ पैदा कर रहा था| हर कोई छोटा-बडा, गरीब-अमीर किसी खुश खबर का बेसब्री से इंतजार कर रहा था| नये साल कि शुरुआत किसी अच्छे खबर से हो, इस कि प्रार्थना कर रहा था| वो दुआ आखिर असर कर गयी| विना शल्यक्रिया, हृदय चिकित्सा के लिये ख्यातकीर्त माधवबाग ने भय और तनाव से भरे इस अंधेरे युग में एक चांदी कि परत को जोडा है| हमें यह घोषणा करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि ८०० से अधिक मधुमेह के मरीज हमारे उपचार के बाद मधुमेह जैसी जटिल बीमारी से पुरी तरह से उबरने में कामयाब हुये है|
कहानी मधुमेह सें आजादीकी
करोना की भयानक संगत ने पूरी दुनिया को अपने घुटनों पर ला रखा था| घुमना-फिरना भी मुश्किल हो चला था| हम अपने हि घर के चार दिवारों में कैद हो गये थे| कोई आशा कि किरन नजर नही आ रही थी| और तो और, इस बीमारी की असंगत प्रकृति को देखकर लोगों में, विशेषकर मधुमेह से पिडीत बुजुर्गों में भय का माहौल था| करोना से पिडीत मरीजों का इलाज करनेवाले विश्व भर के विशेषज्ञों ने पाया कि करोना ने जिन कि जान ली उनमें से ४८% मरीजों में कुछ अन्य विकारों से जटिलताएं थीं| उस में भी खास बात ये थी कि इन ४८% मरीजो में ज्यादा तर लोग मधुमेह से पिडीत थे| भारत में भी यह संख्या बढ़ रही है। भारत में यह आंकड़ा ३९.७% था।
इस सूचना और आंकड़ों ने 'टीम माधवबाग' में चिंता का माहौल पैदा कर दिया| एक कडी चुनौती माधवबाग के विशेषज्ञो के सामने थी| मरीजो को इस संसर्ग से दूर रख के उन तक पहुँचने कि ये चुनौती थी| कोई रास्ता नजर नही आ रहा था| तब माधवबाग के चीफ मेडिकल हेड डॉ. गुरुदत्त अमीनजी ने बिना कोई समय गवाये स्थिती को संभाला| उन के नेतृत्व में माधवबाग के सभी डॉक्टर इकठ्ठा हुये| चर्चा हुई और आधुनिक तकनीक कि मदद लेने का खयाल सामने आया| घर कि चार दिवारोंमें कैद मरीजों को ऑनलाईन सलाह देने का निर्णय लिया गया| इसी से इस्तमाल करने में आसान 'एम. आई. बी. पल्स मोबाइल एप्लिकेशन' कि नींव रखी गयी| मगर उस से भी बडी चुनौती ये थी कि माधवबाग गत १४ सालो में जो चिकित्सा पद्धती अपनाये हुये था, उसे ऑनलाईन कैसे लेके जाये....मगर माधवबाग के डॉक्टरों ने मरीजों कि मदद के लिये दिन रात एक कर दिये और उस के अच्छे परिणाम सामने आये| एक दो नही, बल्की डायबेटीस के ८०० मरीजों ने मधुमेह को पराजित कर के उस के चंगुल से खुद को आजाद कर लिया| और उस के साथ हि उन के सर पर मंडरानेवाला करोना का खतरा भी टल गया|
'एम. आई. बी. पल्स मोबाइल एप्लिकेशन' यह एक बहुत हि आसान मोबाइल एप्लिकेशन है| इस में चॅटिंग कि सुविधा भी है| यह माधवबाग के चिकित्सकों से संपर्क करके अपनी समस्याओं को हल करने की सुविधा मरीजो को प्रदान करता है| शुरू में १० हजार लोग उस के सबस्क्रायबर थे| बाद में केवल एक महिने के भीतर यह संख्या बढ कर ५० हजार हो गई| इस 'एम. आई. बी. पल्स मोबाइल एप्लिकेशन' के माध्यम से, माधवबाग के डॉक्टर इन सभी जुड़े रोगियों को भोजन, व्यायाम तथा जीवनशैली पर ऑनलाइन मार्गदर्शन प्रदान कर सके| उन कि समस्याओं का समाधान कर सके|
इस मोबाइल एप्लिकेशन कि विभिन्न विशेषताएं डॉक्टर तथा मरीज में तुरंत संवाद संभव बनाती है| माधवबागके 200 से अधिक डॉक्टर्स इस मोबाइल एप्लिकेशन पर मौजूद है| कोई भी मरीज दिन में कभी भी उनसे संपर्क कर सकता है| प्रौद्योगिकी के उत्कृष्ट उपयोग और माधवबाग के डॉक्टरों के समर्पण / निष्ठा के कारण, वे इस कोरोना प्रकोप के दौरान भी मधुमेह के उन्मूलन के अपने प्रयासों में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त करने में सफल रहे हैं |
इस सफल लड़ाई के बारे में अधिक जानकारी देते हुए, माधवबाग के ऑपरेशन हेड डॉ. प्रवीण घाडिगांवकर ने कहा, 'हमने हर मरीज को, इस संकट को आपदा के बजाय एक सुनहरे अवसर के रूप में देखने के लिए कहा| हम ने उन से कहा कि किसी भी अफवाहों या खबरों के शिकार हुए बिना, इस सुनहरे अवसर का पूरा लाभ उठाते हुए, अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए घर पर मौजूद समय का उपयोग करें| इस माध्यम से हम ने उनमें सकारात्मकता कि नींव रखी| नतीजतन, कोरोना अवधि के दौरान, जहाँ मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग के रोगी उच्च जोखिम में थे, माधवबाग में सभी रोगियों ने यहाँ के डॉक्टरों के मार्गदर्शन में घर पर ही अपनी बीमारी को काबू किया|'
माधवबाग हर साल ऐसे मरीजों की सफलता का जश्न मनाता है| इस साल करोना के रहते हुए ऐसा समारोह संभव नही था| इस लिये इस साल यह समारोह ऑनलाईन संपन्न हुआ|
पिछले 12 वर्षों से माधवबाग में रोगी सेवा के कार्य में रत डॉ. घाडीगांवकरजीं ने बताया, 'माधवबाग में पिछले तीन साल से हम ऐसे मधुमेह रोगियों की जीत का जश्न मना रहे है| जिन मरीजों ने माधवबाग में पंचकर्म चिकित्सा ले कर २ महिने तक बिना कोई दवा के रह कर, जीटीटी टेस्ट द्वारा यह प्रमाणित किया है, कि अब उनके शरीर से यह शक्कर कि बिमारी चली गई है, उन का सम्मान इस समारोह में किया जाता है| उन्हें एक मानपत्र से सम्मानित किया जाता है|'
माधवबाग के सी ई ओ और संस्थापक डॉ. रोहित सानेजी ने इस अवसर पर कहा, 'इस विजय उत्सव का एक मुख्य उद्देश्य मधुमेह के रोगियों के बीच जागरूकता पैदा करना है, जो लगातार बड़ी संख्या में मधुमेह का शिकार हो रहे है| क्योंकि अब यह साबित हो गया है कि 'टाइप 2' मधुमेह पूरी तरह से ठीक हो सकता है, और ऐसे रोगियों को उन के जीवन भर दवाइयाँ या इन्शुलीन लेने कि, या खाने में कोई परहेज करने कि कोई आवश्यकता नही है| ऐसे मरीजों को अगर मधुमेह से पिडीत मरीजों के सामने ला कर, उन कि कहानियाँ सुनाने को कहा जाये, तो वे कहानियाँ सुन कर मधुमेह रोगियों को इस उपचार को पूरे आत्मविश्वास से लेने और एक निरोगी, खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रेरित कर सकते है|'
माधवबाग केवल प्रमाणों के साथ चिकित्सा में विश्वास करता है| माधवबाग के डॉक्टरों के शोध पत्र कई प्रसिद्ध राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए है| 'द इंटरनॅशनल जर्नल ऑफ इनोव्हेटीव रिसर्च इन मेडिकल सायन्सेस', 'इंटरनॅशनल जर्नल ऑफ डायबेटीस अँड एन्डोक्रीनॉलॉजी', 'युरोपियन जर्नल ऑफ बायो मेडिकल अँड फार्मास्युटीकल सायन्सेस' आणि 'युरोपियन जर्नल ऑफ फार्मास्युटीकल अँड मेडिकल रिसर्च', ये उन में से कुछ उल्लेखनीय पत्रिकाऐं है|
करोना महामारी के दौरान ८०० लोगों को मधुमेह से आजाद कराना एक रिकॉर्ड-तोड़ उपलब्धि है| यह संभव हुआ क्योंकि 'टीम माधवबाग' हमेशा मरीजों के साथ खड़ी थी| ऐसी शानदार सफलता से एक बात यकिनन साबित होती है| भारत को 'मधुमेह मुक्त' बनाने का माधवबाग का लक्ष्य अब ज्यादा दूर नहीं है!
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