लैंगिक समानता का लक्ष्य हासिल करने में पुरुषों और लड़कों की भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण
ब्रेकथ्रू इंडिया के तीन दिवसीय पैन-एशिया शिखर सम्मेलन 'रिफ्रेम' में हुई चर्चा
नई दिल्ली, 4 मार्च, 2022 /PRNewswire/ -- ब्रेकथ्रू इंडिया के तीन दिवसीय पैन-एशिया शिखर सम्मेलन 'रिफ्रेम' ने लैंगिक समानता को हासिल करने में पुरुषों और लड़कों की भागीदारी सुनिश्चित करने और मर्दानगी के बदलते मानकों के बीच जवाबदेही से जुड़ी चिंताओं पर जागरूकता फैलाने की दिशा में एक संवाद की पहल की है। ब्रेकथ्रू इंडिया की तरफ से शुरू की गई परिचर्चा जवाबदेही के मानकों को लागू करने के उपायों और चुनौतियों के इर्द-गिर्द केंद्रित है।
पुरुषों और लड़कों की भागीदारी सुनिश्चित किया जाना बेहद अहम
भारत को अभी जब अपने लैंगिक समानता लक्ष्यों के साथ तालमेल बैठाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लैंगिक समानता पर सतत विकास लक्ष्य-5 के संदर्भ में प्रगति संबंधी राष्ट्रीय रिपोर्ट इसका स्पष्ट प्रमाण हैं कि समाज में पुरुषों और महिलाओं के बीच रिश्तों में अधिकारों की असमानता को लेकर समझ और जागरूकता बढ़ाने की कितनी जरूरत है। विश्व स्तर पर, मौजूदा रुझान बताते हैं कि बड़े पैमाने पर पुरुषों और लड़कों को लैंगिक समानता के विमर्श से बाहर ही रखा गया है। जबकि, भारत ही नहीं, उससे बाहर भी इस दिशा में प्रगति के लिए पुरुषों और लड़कों की भागीदारी सुनिश्चित किया जाना बेहद अहम है।
एफआईएसडी, श्रीलंका में डायरेक्टर प्रोग्राम/जेंडर एंड डेवलपमेंट एडवाइजर समिता सुगथिमाला ने चर्चा की शुरुआत इस टिप्पणी के साथ की, 'जब लैंगिक हिंसा की रोकथाम की बात होती है तो तमाम सारे पुरुष प्रधान प्रयास नजर आते है लेकिन जवाबदेही तय करने, कार्यक्रमों की रूपरेखा और नीतियां बनाने आदि के संदर्भ में ये कितने असरदार साबित हुए, यह बताने वाली कोई रिसर्च नहीं आई है। महिला अधिकार संंस्थाओं के साथ परामर्श का अभाव है, महिलाओं के अधिकारों और उनके नेतृत्व को पूरी तरह स्वीकृति नहीं मिलती है, और आंदोलन में शामिल पुरुष बहुत ज्यादा हावी रहते हैं, खासकर नेतृत्व वाली भूमिकाओं में. ऐसे में कार्यक्रमों के नतीजे तेजी से सामने आएं, इसके लिए हमें इस पर सवाल उठाना होगा।'
बीजिंग फ्रेमवर्क लैंगिक समानता के लिए कारगर
बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन में जिस तरह की कल्पना की गई है, उसके मुताबिक लैंगिक समानता के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इसमें पुरुषों और लड़कों को शामिल करना एक महत्वपूर्ण पहलू है। बीजिंग फ्रेमवर्क में माना गया है कि पुरुषों की भागीदारी इसलिए जरूरी है क्योंकि इसके जरिये ही उन संरचनाओं, मान्यताओं, प्रथाओं और संस्थानों को चुनौती दी जा सकेगी जो पुरुषों को विशेषाधिकार प्रदान करते हैं और यही पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता खत्म करने का एक प्रमुख साधन बन सकता है।
मस्कुलिनिटीज एंड इंगेजिंग मेन इन जेंडर इक्वैलिटी, लेबनान में प्रोग्राम मैनेजर एंथनी केडी ने कहा, 'जवाबदेही यह समझने और स्वीकार करने में है कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाओं और अन्य समूहों को नुकसान पहुंचाने में एक पक्ष अपनी निहित शक्तियों और विशेषाधिकारों के माध्यम से क्या भूमिका निभाता है। दूसरी तरफ, मर्दों और मर्दानगी का मुद्दा इससे जोड़ने का काम महिलाओं के साथ बातचीत से ही तय होना चाहिए। महिलाओं और हाशिए के अन्य समूहों को इस प्रक्रिया में सबसे आगे रहने की जरूरत है ताकि यह पहचान सुनिश्चित रहे कि हम वास्तव में यह सब किसके लिए कर रहे हैं।' यद्यपि महिलाएं अपने अधिकारों पर दावा जताने के लिए अधिक सशक्त होती हैं, लेकिन कई संस्थाएं लैंगिक हिंसा का चक्र तोड़ने के लिए पुरुषों और लड़कों को परिचर्चा में शामिल करने की अहमियत को भी महसूस कर रही हैं। मौजूदा समय में सामाजिक समानता हासिल करने के प्रयासों में पुरुषों और लड़कों को शामिल किया जाना देश और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। लेकिन हमें उन विभिन्न फैक्टर पर विचार करने की जरूरत है जो पुरुषों और लड़कों को प्रभावित करते हैं, और इस तरह मर्द और मर्दानगी जैसे मसलों पर कारगर साबित होते हैं।
नारीवादी विमर्श में पुरुषों और लड़कों रणनीतिक रूप से शामिल करने की जरूरत
द जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी, इंडिया में फेमिनिस्ट रिसर्चर, फैकल्टी मधुमिता दास ने कहा, 'यदि आप अन्याय के खिलाफ पुरुषों और लड़कों के खड़े होने के बढ़ते साक्ष्यों को देखेंगे तो पाएंगे कि अधिकांश पहल ऐसी थी जिनमें बहुत ही सीमित स्तर पर ध्यान केंद्रित किया गया, इन्हें एक सहायक दृष्टिकोण के तौर पर अपनाया गया, न कि रणनीति के तौर पर। देखा गया है कि इस तरह की पहल यह पहलू जोड़ने के कारणों को तो ज्यादा उचित ठहराती हैं, लेकिन इस बात को गहराई से समझने की कोशिश नहीं करतीं कि कैसे यह कदम लैंगिक समानता के समग्र लक्ष्य को हासिल करने में मददगार होगा।महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, एसआरएचआर, और एलजीबीटीक्यूआईए+ आंदोलन के प्रति जवाबदेही यह सुनिश्चित करेगी कि हमारे प्रयास अधिक प्रभावी और असरदार हों और यह पुरुषों और लड़कों के साथ हमारे सभी कार्यों का केंद्रबिंदु हो. जवाबदेही हमारे अपने स्तर पर शुरू होती है, हमारी शक्ति और विशेषाधिकार पहचानने, सहयोगात्मक कार्यों पर जोर देने और व्यक्तिगत और संस्थागत दोनों ही स्तर पर लैंगिक समानता और समान अधिकारों के खिलाफ जारी प्रथाओं को रोकने के साथ. इसके अलावा, हमें उन सभी आंदोलनों के साथ भी जुड़ना होगा जो लैंगिक समानता के मौजूदा मानदंडों को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं।'
इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए युवालय, काठमांडू की संस्थापक, अध्यक्ष संजोग ठाकुरी ने कहा, 'पुरुष और मर्दानगी पर काम करते हुए हमने देखा है कि पुरुषों के लिए लैंगिक समानता के बारे में बात करना बहुत आसान है। हमारी पहल में दो चीजें एकदम नदारत है, पुरुषों और लड़कों को इसमें शामिल करना और वैचारिक योजना और आंदोलन निर्माण. लैंगिक हिंसा में पुरुष और लड़के अग्रणी भूमिका निभाते हैं, लेकिन वैचारिक स्पष्टता की कमी के कारण वे पुरुषों की व्यस्तता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं और ज्यादा स्पेस लेने के बावजूद सीमित नतीजे ही दे रहे हैं. हमें नारीवादी विमर्श में पुरुषों और लड़कों की सार्थक और नैतिक भागीदारी सुनिश्चित करने की जरूरत है।'
पुरुषों और लड़कों के साथ अधिकांश कार्य व्यक्तिगत व्यवहार परिवर्तन पर केंद्रित होता है. हालांकि यह महत्वपूर्ण है, लेकिन यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि मर्द और मर्दानगी का विषय पूरी व्यवस्था में बदलाव लाने पर केंद्रित हो। ताकि ये समानता और न्याय के व्यापक नारीवादी एजेंडे को सार्थक ढंग से आगे बढ़ाने में मूल्यवान साबित हो।
ब्रेकथ्रू के बारे में:
ब्रेकथ्रू एक स्वयंसेवी संस्था है जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम करती है। कला, मीडिया, लोकप्रिय संस्कृति और सामुदायिक भागीदारी से हम लोगों को एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिसमें हर कोई सम्मान, समानता और न्याय के साथ रह सके। हम अपने मल्टीमीडिया अभियानों के माध्यम से महिला अधिकारों से जुड़े मुद्दों को मुख्यधारा में लाकर इसे देशभर के समुदाय और व्यक्तियों के लिए प्रासंगिक भी बना रहे हैं। इसके साथ ही हम युवाओं, सरकारी अधिकारियों और सामुदायिक समूहों को प्रशिक्षण भी देते हैं, जिससे एक नई ब्रेकथ्रू जनरेशन सामने आए जो अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला सके।
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