होम्योपैथी का उपहार देकर अपने बच्चे को सुरक्षित रखें
मुंबई, 14 नवंबर, 2019 /PRNewswire/ -- अकेले अमेरिका में एक लाख से अधिक बच्चे होमियोपैथी का उपयोग करते हैं।1 भारत में 10 करोड़ से अधिक लोगों का होम्योपैथी से इलाज किया जाता है जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं। यह एक तथ्य है कि होमियोपैथी बच्चों में इंफैन्टाइल कोलिक, ईजी डेंटिशन, डेंटिशन डायरिया, सांस रोकने वाले स्पेल्स और अन्य रोगों के लिए उपचार का अनुशंसित रूप है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है और इसलिए होम्योपैथी से उपचार शुरू करने का सबसे अच्छा समय बचपन है। होम्योपैथी बच्चों के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विकास के लिए भी अच्छा काम करती है।
होम्योपैथी और मानसिक विकास
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएसडी):
हम सभी बच्चों के व्यवहार संबंधी मुद्दों को जानते हैं और हो सकता है कि कुछ बच्चे सिर्फ अभिनय करते हों, लेकिन दूसरे बच्चों के खराब व्यवहार के पीछे गहरी मनोवैज्ञानिक समस्या हो सकती है। परम्परागत चिकित्सा के अनुसार, चाहे इन बच्चों में से कोई बच्चा शांत और उदासीन हो या अत्यधिक हाइपरएक्टिव हो, वे सभी अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) के ही दायरे में आते हैं। वास्तव में, अमेरिका में दो मिलियन से अधिक बच्चे वर्तमान में एडीएचडी की दवा ले रहे हैं, जिसका मतलब है कि हर 30 बच्चों में से एक बच्चा2 इस रोग से ग्रसित है। पारंपरिक चिकित्सा में, बच्चों को उनकी हाइपरएक्टिव अवस्था शांत करने के लिए ताकत बढ़ाने वाली दवा यानी स्टिमुलेंट्स दिया जाता है। यह दिलचस्प है कि एडीएचडी के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक दवा एक हद तक होम्योपैथिक सिद्धांत 'लाइक क्योर्स लाइक' पर आधारित है, जिसमें एक स्टिमुलेंट, मेथिलफेनिडेट,'बेचैन' एडीएचडी बच्चों को दिया जाता है, ताकि उनके 'भटकने' वाली हाइपरएक्टिव स्थिति को शांत रखा जा सके। हालांकि होम्योपैथी में, डॉक्टर बच्चे की अनोखी प्रकृति, स्वभाव, पसंद और नापसंद के साथ ही बेचैनी को भी एक सामान्य लक्षण के रूप में देखते हैं, क्योंकि होम्योपैथी में हाइपरएक्टिव बच्चों के लिए एक दर्जन से अधिक उपचार उपलब्ध हैं। एडीएचडी से ग्रसित किसी विशेष बच्चे के मामले में बहुत ही खास तौर पर असर करने वाली दवा ही बेहतर बदलाव लाने में सक्षम होगी, और इसी वजह से होम्योपैथी उस पारंपरिक चिकित्सा से अलग है जिसमें सभी के लिए एक ही दवा कारगर बताई जाती है।
सांस रोक देने वाले स्पेल्स:
6 महीने से लेकर 5 साल की उम्र तक के बच्चों को कभी-कभी हल्के दौरे (सीज़र्स) भी पड़ सकते हैं, जिन्हें सांस रोकने वाले स्पेल्स भी कहते हैं। ज्यादातर माता-पिता की चिंता का कारण बन जाने वाले ये स्पेल्स अक्सर गुस्से के दौरे, गंभीर भावनात्मक स्थिति, निराशा या गहन दर्द की भावना के बाद आते हैं। लेकिन एक बात जो माता-पिता को समझने की जरूरत है, वह यह कि सांस रोकने वाले स्पेल्स अनैच्छिक रिफ्लेक्स होते हैं। ये दौरे आम तौर पर एक मिनट से भी कम समय तक रहते हैं (हालांकि यह परेशान मां-बाप के लिए उम्र जितने लंबे लग सकते हैं), और उसके बाद बच्चा चैतन्य हो जाता है और सामान्य रूप से सांस लेना शुरू कर देता है। यह पाया गया है कि स्पेल्स से ग्रसित बच्चों के मामले में होम्योपैथी अच्छी तरह से कारगर है। सांस रोकने वाले स्पेल्स को जन्म देने वाले व्यवहार संबंधी विकारों के उपचार में इग्नेशिया अमारा सबसे अधिक अनुशंसित होम्योपैथिक उपचारों में से एक है। हालांकि, बच्चों से सम्बंधित सभी बीमारियों के मामले में डॉक्टर से परामर्श करने की जरूरत होती है, ताकि आप यह सुनिश्चित कर सकें कि आपके नन्हें-मुन्ने को सही उपचार मिल रहा है।
होम्योपैथी और शारीरिक विकास
शिशु (इंफैन्टाईल) एक्जिमा या एटोपिक डर्मेटाइटिस (एडी):
एक्जिमा सभी उम्र और सभी जातीय वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है; हालाँकि, शिशु एक्जिमा या एटोपिक डर्मेंटाइटिस (एडी) बच्चों में होने वाले सबसे आम त्वचा रोगों में से एक है। अध्ययनों से पता चलता है कि लगभग 85 प्रतिशत लोग 5 साल की उम्र से पहले ही एक्जिमा से पीड़ित होने लगते हैं। इस रोग में कुछ छोटे चकत्ते से लेकर शरीर के अधिकांश हिस्से को ग्रसित करने लेने वाले त्वचा रोग तक शामिल है। शिशुओं में एक्जिमा अक्सर चेहरे, डायपर क्षेत्र, घुटने के सामने और कोहनी के पीछे होता है। इसे शरीर के मुड़ने वाले हिस्से की त्वचा में भी, जैसे कि बच्चों के घुटने के पीछे और कोहनी के सामने, देखा जा सकता है। गर्भावस्था के दौरान उपजे तनाव, कामकाज का उच्च दबाव, रिश्तों की समस्याएं, जीवन से जुड़ी कुछ घटनाओं या यहां तक कि, अवांछित गर्भावस्था को लेकर अस्वीकृति का भी नवजात बच्चे पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है जो एलर्जी, बार-बार होने वाली खांसी और जुकाम और सही विकास करने में विफलता के रूप में दिखता है। होम्योपैथिक दवाएं कभी-कभी न केवल रोगी के अतीत या परिवार के इतिहास के आधार पर निर्धारित की जाती हैं, बल्कि मां की गर्भावस्था के दौरान होने वाली कुछ भावनात्मक प्रतिक्रियाओं के आधार पर भी निर्धारित की जाती हैं।
बचपन में होने वाली अस्थमा:
अस्थमा को स्कूल से अनुपस्थित रहने के एक सामान्य कारण के रूप में देखा जाता है। एक अनुमान के अनुसार, अस्थमा 14 मिलियन स्कूली दिनों के नुकसान की वजह है। इसके अलावा, यह लगभग तीन मिलियन डॉक्टरी दौरों और हर साल अस्पताल में दो मिलियन भर्ती का कारण भी है। अस्थमा से पीड़ित बच्चे अक्सर खांसी और घरघराहट से पीड़ित होते हैं; वे सीने में जकड़न और सांस की तकलीफ का भी अनुभव करते हैं। अनुसंधान बताता है कि इन स्थितियों का कारण बैक्टीरिया के बजाय, वायरस होते हैं। अधिकांश माता-पिता मानते हैं कि जिन बच्चों में घरघराहट नहीं होती है, वे अस्थमा के रोगी नहीं होते हैं, क्योंकि विशेष रूप से रात में, या किसी भी शारीरिक गतिविधि के दौरान, एकमात्र लक्षण जो मौजूद हो सकता है, वह परेशान करने वाली खांसी है। जो बच्चे एअर पैसेज, रेकरिंग ब्रोंकाइटिस या एलर्जी ब्रोंकाइटिस की बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें अस्थमा या अस्थमा जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। फ्लू सहित श्वसन संबंधी संक्रमण, बच्चों में अस्थमा के दौरे ला सकते हैं। होम्योपैथी अस्थमा से पीड़ित बच्चे का इलाज, बच्चे को समग्र दृष्टिकोण से देखते हुए करती है। यह न केवल एक दौरे के वक्त अनुभव किए गए लक्षणों की जांच करती है, बल्कि शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तरों पर होने वाले सभी परिवर्तनों और विविधताओं की भी जांच करती है। इससे यह निर्धारित करने में मदद मिलती है कि बच्चे का स्वास्थ्य कैसे खराब हुआ है। होम्योपैथी भी वंशानुगत कारकों और पर्यावरणीय ट्रिगर्स का विश्लेषण करती है, और न केवल लक्षण या निदान से, बल्कि बीमारी के कारण का इलाज करके व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को उत्तेजित करती है।
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पिछले 30 वर्षों में, डॉ. बत्रा ने 15 लाख से अधिक रोगियों का इलाज किया है, जिसमें 12 वर्ष से कम आयु के 40,000 रोगी हैं। इनमें से 93% रोगियों ने होम्योपैथिक उपचार से बालों, त्वचा, श्वसन, एलर्जी, खराब रोग प्रतिरोधक क्षमता, अस्थमा सहित अन्य बीमारियों के मामले में अच्छे नतीजे पाये हैं।
बच्चों के इलाज में होम्योपैथी की प्रभावकारिता पर टिप्पणी करते हुए, डॉ. मुकेश बत्रा, पद्मश्री से सम्मानित और संस्थापक, डॉ. बत्रा'ज ग्रुप ऑफ कंपनीज ने कहा कि '' बच्चे हमें 'कैंडी डॉक्टर' कहते हैं, क्योंकि बचपन की कई समस्याओं का इलाज मीठी गोलियों से किया जाता है। अपने 45 वर्षों की प्रैक्टिस में, मैंने कई तरह की बीमारियों से पीड़ित बहुत से बच्चों को होम्योपैथी से प्रभावी, सुरक्षित और प्राकृतिक उपचार से ठीक होते देखा है। भारत में, ज्यादातर बच्चों की बीमारियां खराब रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण पैदा होती हैं। होम्योपैथी जड़ से इलाज करती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करती है।"
डॉ. बत्रा के नवीनतम इनोवेशन में से एक, होम्योपैथिक उपचार में आनुवंशिकी का उपयोग करना है। यह विशेष रूप से बाल विकास में बाधा बनने वाली समस्याओं, जैसे बच्चों को एलर्जी, अस्थमा, त्वचा रोगों के साथ-साथ पोषण संबंधी कमियों के साथ वंशानुगत बीमारियों का सुरक्षित और सटीक अनुमान लगाने में मदद करती है। डॉ. बत्रा की जेनो होम्योपैथी के लिए किये जाने वाले आनुवंशिक परीक्षण में एक सरल और दर्द रहित लार परीक्षण होताकिया जाता है जो बीमारी के प्रकट होने से पहले ही समस्या की गंभीरता से आकलन कर सकता है।
बाल दिवस मनाने के लिए, डॉ. बत्रा 12 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त परामर्श करेंगे। ऑफ़र का लाभ उठाने के लिए, आज अपने निकटतम डॉ.बत्रा क्लिनिक पर जाएं या +91-9167791677 पर कॉल करें। ऑफर केवल 30 नवंबर 2019 तक वैध है।
स्रोत:
1. https://www.hri-research.org/resources/essentialevidence/use-of-homeopathy-across-the-world/
About Dr Batra's Homeopathy
With around 225 clinics across India, UK, UAE, Bahrain and Bangladesh, Dr Batra's Multi-Specialty Homeopathy Clinics is the world's largest chain of homeopathic clinics. With around 400 homeopathic doctors working across the globe and having treated around 15 Lakh patients, the brand has recently been recognised as an 'Icon of Indigenous Excellence in Healthcare' at Iconic Brand of India Awards 2018' organized by The Economic Times.
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